साइबर लॉ का इतिहास और ये है क्या ?

साइबर या कंप्यूटर कानून क्या होता है

विज्ञान के आविष्कार, नयी तकनीकें जहां विज्ञान को आगे ले जाते हैं वहीं पर  कानून के लिए हमेशा अड़चने पैदा करते हैं।
  • गैलिलियो  ने इस बात का सबूत दिया कि सूरज, पृथ्वी के चारो तरफ नहीं, ब्लकि  पृथ्वी और अन्य ग्रह, सूरज के चारो तरफ चक्कर लगाते हैं। इसलिए उसे नजरबंद कर दिया गया।
  • जब डार्विन ने ओरिजन आफ स्पीशीस् (Origin of Species) लिखी तब अधिकतर ईसाई देशों में इसके पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस समय अमेरिकी न्यायालयों से एक बहुत बड़ी बहस इस बात पर चल रहा है कि कि ओरिज़न आफ स्पीशीस के साथ एक अन्य तथा कथित सिद्घान्त इंटेलीजेन्ट डिज़ाइन (Intelligent design)  जो कि धार्मिक  है को पढ़ाया जाए अथवा नहीं। कुछ समय पहले, डार्विन के २००वें जन्मदिन पर मैंने एक श्रृंखला लिखी थी। इसे संकलित कर यहां प्रकाशित किया गया है। इसमें इन विवादों की चर्चा है।
धर्म न्यायधिकरण के सामने गैलिलिओ – चित्र क्रिस्टो बान्टी १८५७ – चित्र विकिपीडिया से
सूचना प्रौद्योगिकी एक नयी तकनीक है। इसका जन्म निम्न तीन कारणों से हुआ,
  1. कंप्यूटर: इसके बारे में तो हम सब जानते ही हैं कुछ और कहना तो ठीक नहीं होगा।
  2. इंटरनेट: यह तो आप जानते हैं कि कंप्यूटर आपस में संवाद कर सकते हैं। इंटरनेट दुनिया के सारे कंप्यूटरों का वह जाल है जो एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं।
  3. साइबर स्पेस: कंप्यूटर के द्वारा संवाद करते समय सूचनाओं का आदान प्रदान ईमेल, ऑडियो क्लिप, वीडियो क्लिप के जरिये होता है। सूचना का यह आदान प्रदान एक काल्पनिक जगह (Virtual space) में होता  है। इसे साइबर स्पेस (Cyber Space) कहते हैं।
इन तीनो से मिल कर, सूचना प्रौद्योगिकी का जन्म हुआ।
इस तकनीक ने कानून के क्षेत्र में जितनी मुश्किलें पैदा की वह अन्य किसी आविष्कार या तकनीक ने नहीं। इन मुश्किलों के अलग अलग हल ढूंढे जा रहे है। देश कानून बना रहे हैं। सरकारें नियम व अधिनियम बना रही  हैं। न्यायालय फैसले दे रही हैं। इन सारे समाधानों को  मोटे तौर पर, कंप्यूटर कानून, या इंटेरनेट कानून या साइबर कानून कहा जाता है। मुझे साइबर कानून शब्द पसन्द है। इसलिये मैं इसी का प्रयोग करूंगा।

भारत में साइबर कानून

इस नयी तकनीक के कारण पैदा हुई मुशकलों का हल निकालने के लिये सबसे पहले अपने देश में कानून में बदलाव, बौद्धिक सम्पदा अधिकार के क्षेत्र में किया गया।
  • कॉपीराइट अधिनियम को १९९४ एवं १९९९ में संशोधित कर, इस तकनीक के द्वारा लायी गयी और मुश्किलों को दूर किया गया।
  • २००२ में, पेटेंट अधिनियम में भी संशोधन किया गया। २००४ में एक अध्यादेश के द्वारा, पेटेंट अधिनियम में किये गये संशोधन को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया। लेकिन जब यह अध्यादेश, २००५ में अधिनियम के रूप में लाया गया तब इस स्पष्टीकरण को अधिनियम में नहीं जोड़ा गया। इसका अर्थ यह हुआ कि पेटेंट अधिनियम में, २००२ में किया गया संशोधन ही लागू है। इस बारे में आप मेरे लेख ‘पेटेंट और कम्प्यूटर प्रोग्राम‘ में पढ़ सकते हैं।
इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण अधिनियम २००० में, सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) (आईटी अधिनियम) के नाम से बनाया गया। इस नियम के अन्तर्गत निम्न चार अधिनियमों में भी संशोधन कया गया,
  1. The Indian Penal Code, 1860;
  2. The Indian Evidence Act, 1872;
  3. The Bankers’ Book Evidence Act, 1891;
  4. The Reserve Bank of India Act, 1934.
इस समय तीन तकनीकियां – इंटरनेट, टेलीफ़ोन, और टेलीविजन आपस में मिलते जा रहे हैं। वह समय दूर नहीं है जब तीनो मिल जायेगें। इस तकनीकियों के फायदों का ठीक प्रकार से लाभ उठाने के लिए, एक अधिनियम बनाने की बात सोची गयी। इस का नाम Communication Convergence Bill है। यह बिल संसद समिति के सामने भेज दिया गया था। समिति ने,  हर क्षेत्र के लोगों से अलग अलग  बात करने के बाद  यह पाया कि इसको बनाने के बारे में विरोधाभास है,
  • एक विचारधारा के लोग यह कहते थे कि सरकार को यह अधिनियम नहीं बनाना चाहिए;
  • दूसरी विचारधारा के लोगों का कहना था कि इसे बनाना चाहिए।
इन दोनों विचारधाराओं को बताते हुए, समिति ने अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में लिखे विरोधाभास के कारण, यह बिल अभी भी अधिनियम के रूप में नहीं बन पाया। लेकिन इसमें बहुत सारे ऎसे प्राविधान थे जो कि वास्तव में बेहतरीन थे।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में २००८ में संशोधन किया गया और कम्यूनिकेशन कंर्वजेन्स बिल के कई प्रावधानों को,  संशोधन के द्वारा इसमे सम्मिलित कर लिया गया है। हांलाकि इस संशोधन के बाद भी, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम सारी कमियां दूर नहीं हुई है। बहुत कुछ करना बाकी है। देखिय वह कब तक हो पाता है।

साइबर कानून का उल्लंघन और उसके उपाय

साइबर कानून के उल्लंघन को मोटे तौर से दो क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम में साइबर अपराध के लिए दो तरह के उपाय दिए गये है।
  • पहला, दीवानी उपाय (Civil relief): इसमें जो भी व्यक्ति आपको नुकसान पहुँचाता है उससे आप हर्जाना प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यह मुकदमे सिविल न्यायालयों  में नही चलते। इन मुकदमे को तय करने के लिए एक अलग से अधिकारी (Adjudicating Officer) नियुक्त किया जाता है। इस समय प्रत्येक राज्य में उनके इंफॉरमेशन तकनीक के सक्रेटरी ही यह अधिकारी है। इनके फैसले की अपील साइबर ट्रियूब्नल मे होती है। उसके बाद इनकी अपील हाई कोर्ट में दाखिल की जा सकती है।
  • दूसरा फौजदारी अभियोग (Criminal Prosecution): इसमें साइबर कानून के  उल्लघंन करने वालो को सजा हो सकती है। इसके लिए पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ती है और मुकदमा फौजदारी अदालत में ही चलता है।

कंप्यूटर या सर्वर को लक्षय कर किये गये साइबर अपराध

चित्र फोटोबेकेट से
साईबर अपराधों को मुख्यतः दो श्रेणी में बांटा जा सकता है
  • पहला, जहां कंप्यूटर या सर्वर लक्षय है;
  • दूसरा, जहां कंप्यूटर का प्रयोग अपराध करने के लिये किया जाता है पर उनका लक्षय कंप्यूटर या सर्वर नहीं होता है।
दूसरे तरह साईबर अपराधों को भी दो तरह से बांटा जा सकता हैं
  • पहला, जो आपकी सम्पति के विरुद्ध हैं;
  • दूसरा यौन और एकांतता से सम्बन्धित हैं।
हांलाकि इन श्रेणियों की सीमायें ठीक प्रकार से परिभाषित नहीं हैं। कुछ अपराध एक से अधिक श्रेणी में भी रखे जा सकते हैं।
आज चर्चा करते हैं पहली श्रेणी के अपराधों के बारे में।
डिनायल आफ सर्विस (Denial of Service) (DoS)
अलग अलग वेब साइटें, अलग तरह की सेवायें देते हैं। यदि उस वेबसाइट पर बहुत सारी ई-मेल भेज दी जांय या हिट होने लगें, तब उसका कानूनन प्रयोग करने वाले, उसकी सेवायें नही ले पाते हैं। वह बंद हो जाती है। इसे डिनायल आफ सर्विस कहते हैं।
वायरस ( Virus)
कम्यूटर में  वायरस दूषित पेन ड्राइव, या फलॉपी या सीडी लगाने से आ सकते हैं यह किसी ई-मेल से भी मिल सकते हैं। यह आपके कम्पयूटर के डाटा को समाप्त कर सकता है। इसके लिए किसी भी ईमेल के साथ लगे संलग्नक को मत खोलिये, यदि वह किसी आपके जानने वाले व्यक्ति ने न भेजा हो।
वेबसाइट हैकिंग और डाटा की चोरी
कंप्यूटर डाटा भी कॉपीराइट की तरह सुरक्षित होता है। बहुत से कंप्यूटरों, वेबसाइटों में  डाटा गुप्त, या निज़ी, या फिर गोपनीय होता है। वेब साइट या कंप्यूटर को हैक कर इसे  कॉपी या नष्ट करना, इसी श्रेणी में आता है।

साइबर अपराध, जिनका लक्षय कंप्यूटर नहीं होता है

चित्र फोटोबेकेट से
बहुत से साइबर अपराध, कंप्यूटर का प्रयोग करके किये जाते हैं पर उनका लक्षय कंप्यूटर या सर्वर नहीं होता है। इस तरह के अपराधों को मुख्यतः निम्न श्रेणी में बांटा जा सकता है।
साइबर आतंकवाद (Cyber Terrorism)
साइबर गतिविधियों के द्वारा धार्मिक, राजनैतिक उन्माद पैदा करना साइबर आतंकवाद के अन्दर आता है। यह किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा को समाप्त कर सकता है।
आर्थिक अपराध
इस समय अधिकतर बैंक का काम अन्तरजाल पर हो रहा है। व्यापार भी अन्तरजाल पर हो रहा है। क्रेडिट कार्ड से गलत तरह से पैसा निकाल लेना। ऑनलाइन व्यापार या बैकिंग में धोखाधडी करना – यह सब आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है।
फिशिंग (Phishing)
अक्सर कुछ ऎसे ईमेल मिलते है जिससे प्रतीत होता है कि वे किसी बैंक में या किसी अन्य संस्था की बेब साइट से हैं। यह आपके बैंक के खाते या अन्य व्यक्तिगत सूचना पूछने का प्रयत्न करते हैं। ये सारी ई-मेल फर्जी है और यह आपकी व्यक्तिगत सूचना को जानकर कुछ गड़बड़ी पैदा कर सकते है। इसे फिशिंग कहा जाता है। इस तरह की ईमेल का जवाब न दें। मेरी पत्नी शुभा, एक बार इनके जाल में फंस चुकी है। हमें सारे पासवर्ड बदलने पड़े।
साइबर छल (Cyber Fraud)
अक्सर ई-मेल ,एसएमएस मिलते है कि भेजने वाली विधवा है जिसके पति का बहुत सारा पैसा फंसा हुआ है और वह  पैसा निकालने में आपकी सहायता चाहती है। इस तरह के भी ईमेल या एसएमएस आते हैं कि आपके  ई-मेल या फोन नम्बर ने करोड़ों की लॉटरी जीत ली है, जिसे पाने के लिए सम्पर्क करें। यह सब फर्जी होता है। यह धोखाधडी  कर, आपको फसाना चाहते हैं। यह साइबर अपराध है और इस पर कभी भी अमल नहीं करना चाहिए।
साइबर जासूसी (Cyber Espionage)
इसे एडवेयर (Adware) या स्पाईवेयर (Spyware) भी कहा जाता है। आपके कंप्यूटर में कभी आपकी अनुमति से कभी बिना अनुमति के स्थापित हो जाते हैं। यह आपकी गतिविधियों की आपकी व्यक्तिगत सूचना एकत्र कर, अन्य को देतें है। जिसके द्वारा वे स्थापित किये जाते हैं। यह हमेशा आपके कंप्यूटर को धीमा भी कर देते हैं।
पहचान की चोरी (Identify Theft)
किसी व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान चोरी करना या उसका इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर को हैक करना या किसी अन्य के नाम से फर्जी काम करना ,पहचान की चोरी कहलाता है। अपने पास वर्ड में नम्बर तथा तथा वर्णमाल दोनो का प्रयोग करें। उसे बदलते रहें। किसी को न बतायें।
स्पैम (Spam)
स्पैम माने अनचाही ई-मेल। यह भी साइबर अपराध  है। हिन्दी चिट्ठाजगत में, यह काफी है। अक्सर चिट्ठाकार बन्धु आपको अपनी चिट्ठी भेज कर उनकी चिट्ठियों को पढ़ने के लिये कहते हैं। यह गलत है। आप इस तरह का ईमेल तभी किसी व्यक्ति को भेजें जब उस व्यक्ति से आप उस चिट्ठी में कुछ करने के लिये कहते हैं या उसके बारे में लिखते हैं। यह न केवल अन्तरजाल शिष्टाचार के विरुद्ध है पर साइबर अपराध भी है।
स्पिम (Spim)
यदि स्पैम अनचाहे ई-मेल है तो स्पिम अन्तरजाल के बातों के दौरान अनचाही बातें।
अन्तरजाल पर पीछा करना (Cyber Stalking)
पीछा करना, तंग करना, इस हद तक घूरना कि दूसरा खीज जाये, डर जाय। यही काम जब अन्तरजाल पर हो तो साइबर स्टॉकिंग कहलाता है।
अशलीलता
अशलील ईमेल, अशलील चित्र, चित्रों को बदल कर किसी अन्य का चित्र लगा देना, यह सब अशलीलता के अन्दर आता है। इस तरह के साइबर अपराध सबसे अधिक हैं। इसकी चर्चा, मैंने ‘अन्तरजाल की माया नगरी में‘ श्रृंखला में किया था।

अन्तरजाल, एकांतता का अन्त है

इस समय जितने साइबर अपराध हो रहें हैं वे सारे रिपोर्ट नहीं हो रहें शायद न लोगों का समझ में आता है कि उनसे कैसे निपटा जाय और न ही उन्हें विश्वास है कि इसका संतोषजनक हल निकल सकता है। सच यह भी है कि  इस समय हमारे पास इस तरह के अपराधों को जांच करने के लिये न ही प्रशिक्षित अन्वेषक हैं और न ही तय करने वाले न्यायधीश। लेकिन यह बदल रहा है।
लोग अक्सर साइबर अपराध यह सोच कर करते हैं कि वे अज्ञात हो कर साइबर अपराध कर सकते हैं लेकिन यह सच नहीं है।
पीटर स्टेनर (Peter Steiner) ने ५, जुलाई में न्यू यॉर्कर  में एक कार्टून निकाला था। यह अपने आप में मील का पत्थर था। इसमें दो कुत्ते कम्युटर पर बैठे हैं। वह कुत्ता जो कम्यूटर पर काम कर रहा है वह दूसरे से कहता है कि
‘On the Internet, nobody knows that you are a dog.’
अन्तरजाल पर कोई नहीं जानता कि आप एक कुत्ते हैं।
चित्र विकिपीडिया से
लेकिन यह अन्तरजाल का विरोधाभास है, धोखा है। यही अन्तरजाल पर साइबर अपराधों की जड़ है। लोग समझते हैं कि वे अन्तरजाल पर अज्ञात रह कर अपराध कर सकते हैं। लेकिन यह सच से परे है। सच तो यह है कि,
‘On the Internet, everybody knows that you are a dog.’
अन्तजाल पर सबको मालुम है कि आप कुत्ते हैं।
आने वाले समय में, न ही इस तरह के अपराधों की जांच करने वाले अन्वेषक भी बढ़ेगें, न्यायधीश भी सीखेंगे और लोगों का इस का विश्वास होगा कि इनका संतोषजनक हल निकाला जा सकता है। साइबर अपराधी बच कर नहीं जा सकता। वह हमेशा पकड़ा जा सकता है। अन्तरजाल पर कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है। अन्तरजाल एकांतता का अन्त है।
THANKS   उन्मुक्त इतनी अच्छी जानकारी के लिए 

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